प्यार एक कला है और कला संयम का दूसरा नाम है. और इसकी व्याख्या की गयी थी
किसी भी एक व्यक्ति को इतना प्यार नहीं करना चाहिए कि जीवन में किसी दूसरे
उद्देश्य की गुंजाईश न रह जाए - कि जीवन एक स्वतंत्र इकाई है और यदि वह
बिलकुल पराधीन हो जाये तो यह कला नहीं है , क्योंकि कला आदर्श से उतरकर है.
- शेखर - एक जीवनी - से
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