मुर्दा दिलों को रास कब आई है ज़िन्दगी
हमने तो पत्थर में भी पायी है ज़िन्दगी
इस बेवफा का क्या है कब साथ छोड़ दे
अपनी नहीं पराई है ज़िन्दगी
- नमालूम
हमने तो पत्थर में भी पायी है ज़िन्दगी
इस बेवफा का क्या है कब साथ छोड़ दे
अपनी नहीं पराई है ज़िन्दगी
- नमालूम
No comments:
Post a Comment