सर छुपाना वो भी इस वस्ती में कोई खेल है
क्या खबर तुमको कि ओढ़नी मंहगी पड़ी
एक ख्वाहिश के लिए क्या-क्या बिका मत पूछिए
मुख़्तसर ये है कि चादर रेशमी मंहगी पड़ी
- नमालूम
बागवां है चार दिन की बाग़-ए-आलम में बहार
फूल सब मुरझा गए खली बियाबां रह गया
दौलते-दुनिया न काम आएगीकुछ भी बाद मरग
है ज़मीन में खाक कारूं का खजाना रह गया
- नमालूम
होगा हर एक आह से महशर बपा 'रसा'
आशिक का तेरे होश में आना नहीं अच्छा
फसल-ए-गुल में भी रिहाई कि न कुछ सूरत हुई
क़ैद में सय्याद मुझको एक ज़माना हो गया
- नमालूम
ये आज फिजा खामोश है क्यूँ , हर ज़र्रे को आखिर होश है क्यूँ
या तुम ही किसी के हो न सके या कोई तुम्हारा हो न सका
मौजें भी हमारी हो न सकीं , तूफां भी हमारा हो न सका
- नमालूम
बादशाहों की मुअत्तर ख्वाब्गाहों में कहाँ वह मज़ा जो भीगी-भीगी घास पे सोने में है
मुतमइन बेफिक्र लोगों की हंसी में भी कहाँ
लुत्फ़ जो एक दूसरे को देखकर रोने में है
- नमालूम
27.05.01