अपनों ने मुझको लूट के पागल बना दिया ग़मे ज़िन्दगी ने मुझको घायल बना दिया
कुछ बनाना चाहा भी मैंने , तमन्ना न हुयी पूरी
मेरी ज़िन्दगी के जन्मदाता ये तूने क्या किया
तुम अपने सुख से सुखी रहो , मुझको दुःख पाने दो स्वतंत्र
मन की परवशता महादुःख मैं यही जपूंगा महामंत्र
लो चला आज मैं छोड़ यही संचित संवेदन भार पुंज
मुझको कांटे ही मिले धन्य ! हो सफल तुम्हें ही कुसुम कुञ्ज