जिनकी बाहों में जग के
काया कंचन हो जाती थी
आज उन्हीं के आगे हम
बुत हैं अपनी मजबूरी में
हमने अपना क्या-क्या खोया
चाहत की मशहूरी में
- नमालूम
काया कंचन हो जाती थी
आज उन्हीं के आगे हम
बुत हैं अपनी मजबूरी में
हमने अपना क्या-क्या खोया
चाहत की मशहूरी में
- नमालूम
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