वो और मैं कभी-कभी समुद्र तट पर अकेले बहुत दूर निकल जाते थे. वहां जहाँ कोई नहीं होता था. केवल किनारा , लहरें होती थीं. और समुद्र की आवाज़ आसमान में फैल जाती थी. हम दो बिन्दुओं की तरह उस अथाह कुदात में गम हो जाते थे. ऐसे में कभी-कभी सृष्टि में खो जाने पर कितना बड़ा आनंद मिलता है. वहां खड़े होकर बहुत दूर ढ़लते हुए सूर्य को देखते थे. वह दृश्य हमारे समूचे असितत्व को झकझोर कर रख देता था. हम बिलकुल खामोश हो जाते थे.
- नमालूम
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