Wednesday, April 1, 2015

स्त्री कितनी भी बुद्धिमती हो

स्त्री कितनी भी बुद्धिमती हो, कितनी भी साहसी हो परन्तु जीवन के ऐसे अवसरों पर , जब वह किसी पुरुष को चाहने लगती है . वह सब कुछ भुला बैठती है . वास्तव में ऐसे अवसरों पर वह अपनी स्वामिनी स्वयं नहीं होती है . वह बेबस कठपुतली की तरह चलती है और उसे चलाने वाला होता है वह पुरुष , जिसे वह उस समय भगवान् से भी अधिक समझती है.

- नमालूम 

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