Sunday, April 12, 2015

बादशाहों की मुअत्तर

बादशाहों की मुअत्तर ख्वाब्गाहों में कहाँ वह मज़ा जो भीगी-भीगी घास पे सोने में है
मुतमइन बेफिक्र लोगों की हंसी में भी कहाँ
लुत्फ़ जो एक दूसरे को देखकर रोने में है
- नमालूम
27.05.01

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