ढ़लते सूरज की रौशनी में उसका मुख स्वर्ण वर्ण हो आया था. वह ढ़लते हुए सूरज की ओर देख रही थी. उस दृश्य से हमने सदा ही प्रेम किया था. जब सूरज ढ़लने को होता था तो हम खामोश हो जाते थे. हम एक दूसरे से अलग बैठे हुए पश्चिम को निहारा करते थे. हमारा वजूद उस हल्की गर्मी में गलकर सोना हो जाता था. ऐसा लगता था यदि इस जीवन का अंत मृत्यु ही है, तो वह आज क्यों नहीं आती. ऐसा लगता था कि हम उस ह्रदय स्पर्शी शान्ति में खो जाएँ.
- नमालूम
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