Friday, April 3, 2015

उफ़ वे रातें जो तेरे प्यार ने बख्शी थी हमें

उफ़ वे रातें जो तेरे प्यार ने बख्शी थी हमें
गर सुलगती तो कई चाँद उभर सकते थे
एक क़तरा भी गर नब्ज का भड़का होता
हम तो शोलों के समंदर से गुजर सकते थे
- नमालूम

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