मोह ही विनाश की जड़ है . प्रेम जैसी निर्मम वस्तु क्या भय से बांध कर
रखी जा सकती है. वह तो पूरा विश्वास चाहती है, पूरी स्वाधीनता चाहती है ,
पूरी जिम्मेदारी चाहती है. उसके पल्लवित होने की शक्ति भी उसके अन्दर है,
उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिए वह कोई दीवार नहीं है जिस पर ऊपर से ईंट
राखी जा सकती है. उसमें तो प्राण हैं फैलने की असीम की शक्ति है.
- नमालूम
- नमालूम
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